बिहार में हाल ही में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल हुई है। राज्य को देश का सबसे लंबा केबल ब्रिज मिल गया है, जो पटना के कच्ची दरगाह से वैशाली के बिदुपुर तक फैला हुआ है। इस पुल के बनने से उत्तर और दक्षिण बिहार के बीच की दूरी और यात्रा समय में भारी कमी आएगी।
खास बात यह है कि इस ब्रिज के बनने से राघोपुर दियारा जैसे बाढ़ प्रभावित इलाकों के लोगों को अब पटना आने-जाने में सिर्फ 5 मिनट लगेंगे। इस ब्रिज का निर्माण कार्य 2017 में शुरू हुआ था और इसे पूरा करने में लगभग 5000 करोड़ रुपये की लागत आई है। यह पुल न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है क्योंकि यह भारत का सबसे लंबा एक्स्ट्रा-डोज केबल ब्रिज है।
इसका उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया, जिसमें राज्य के कई बड़े नेता और अधिकारी भी शामिल हुए।
New Bihar Cable Bridge: Latest Update
यह ब्रिज पटना के कच्ची दरगाह से शुरू होकर वैशाली के बिदुपुर तक जाता है। इसकी कुल लंबाई अप्रोच रोड सहित लगभग 22.76 किलोमीटर है, जिसमें मुख्य पुल करीब 9.76 किलोमीटर लंबा है। यह ब्रिज छह लेन का है, जिससे भारी ट्रैफिक भी आसानी से गुजर सकेगा।
इस पुल के बनने से राघोपुर, फतुहा, सबलपुर, चकसिकंदर, और आसपास के गांवों को सीधा लाभ मिलेगा। पहले यहां के लोग बरसात के मौसम में नाव से पटना आते-जाते थे, लेकिन अब पूरे साल सड़क से आना-जाना संभव हो गया है।
बिहार के सबसे लंबे केबल ब्रिज
विशेषता | विवरण |
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परियोजना का नाम | कच्ची दरगाह-बिदुपुर सिक्स लेन केबल ब्रिज |
कुल लागत | लगभग ₹5000 करोड़ |
कुल लंबाई | 22.76 किलोमीटर (मुख्य पुल: 9.76 किमी) |
निर्माण कंपनियां | एलएंडटी और देवू (L&T & Daewoo) |
निर्माण शुरू | जनवरी 2017 |
उद्घाटन | जून 2025, पहला फेज चालू |
मुख्य तकनीक | एक्स्ट्रा-डोज केबल ब्रिज |
पिलर की संख्या | 67 |
ऊंचाई | गंगा के जलस्तर से 13-22 मीटर ऊपर |
भार वहन क्षमता | 936 टन प्रति स्पैन |
लाभार्थी क्षेत्र | पटना, राघोपुर, वैशाली, फतुहा, सबलपुर, चकसिकंदर |
अनुमानित पूर्णता | सितंबर 2025 (दूसरा फेज) |
पुल की खासियतें और तकनीकी विशेषताएं
- यह एक्स्ट्रा-डोज केबल ब्रिज तकनीक से बना है, जिसमें केबल्स को विशेष तरीके से जोड़कर मजबूती दी गई है।
- पुल के नीचे से बड़े-बड़े जहाज भी गुजर सकते हैं, क्योंकि पिलर के बीच की दूरी 150-160 मीटर रखी गई है।
- पुल की ऊंचाई गंगा के अधिकतम जलस्तर से 13-22 मीटर ऊपर है, जिससे बाढ़ के समय भी यातायात बाधित नहीं होगा।
- पुल की संरचना इतनी मजबूत है कि हर स्पैन 936 टन तक का भार सहन कर सकता है।
- पुल पर आठ रैंप और दो फ्लाईओवर बनाए गए हैं, जिससे ट्रैफिक फ्लो आसान रहेगा।
- हाई मास्ट सोलर लाइटिंग से पुल रात में भी रोशनी से जगमग रहेगा और पर्यावरण के अनुकूल भी है।
- पुल के पास एक हाईवे म्यूजियम और डॉल्फिन व्यूइंग प्लेटफॉर्म भी प्रस्तावित हैं, जिससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
पुल बनने के लाभ
- यात्रा में समय की बचत: राघोपुर से पटना की दूरी 60 किलोमीटर कम हो गई है।
- आर्थिक विकास: औद्योगिक क्षेत्र फतुहा और सबलपुर से माल अब उत्तर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल तक आसानी से पहुँच सकेगा।
- यातायात का दबाव कम: गांधी सेतु, महात्मा गांधी सेतु और राजेंद्र सेतु पर ट्रैफिक का दबाव कम होगा।
- बाढ़ प्रभावित इलाकों को राहत: दियारा क्षेत्र के लोग अब पूरे साल सड़क से जुड़ गए हैं, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यापार में सुधार आएगा।
- पर्यटन को बढ़ावा: डॉल्फिन व्यूइंग और म्यूजियम जैसी सुविधाओं से पर्यटन को नया आयाम मिलेगा।
निर्माण में आई चुनौतियां
- कोविड-19 महामारी, जमीन अधिग्रहण और बाढ़ जैसी समस्याओं के कारण यह प्रोजेक्ट तय समय से पांच साल देरी से पूरा हो रहा है।
- लगभग 7,000 मजदूर और 1,000 इंजीनियर लगातार काम में लगे रहे, जिसमें दो हिस्सों में अलग-अलग टीमें तैनात थीं।
बिहार के सबसे लंबे केबल ब्रिज से जुड़े मुख्य तथ्य
- देश का सबसे लंबा एक्स्ट्रा-डोज केबल ब्रिज।
- 5000 करोड़ रुपये की लागत से बना।
- पटना से राघोपुर और बिदुपुर को सीधा जोड़ता है।
- पुल की कुल लंबाई 22.76 किमी, मुख्य पुल 9.76 किमी।
- 936 टन भार सहने की क्षमता, 67 पिलर।
- यात्रा समय में भारी कमी, आर्थिक और सामाजिक विकास में तेजी।
- पर्यावरण के अनुकूल डिजाइन और सोलर लाइटिंग।
- पर्यटन और शिक्षा के लिए म्यूजियम और व्यूइंग प्लेटफॉर्म।
निष्कर्ष
बिहार का कच्ची दरगाह-बिदुपुर केबल ब्रिज न केवल राज्य के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। यह पुल न सिर्फ यातायात और कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएगा, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और पर्यटन क्षेत्र में भी नए अवसर खोलेगा।
Disclaimer: यह योजना और ब्रिज पूरी तरह वास्तविक और सरकारी परियोजना है। इसके निर्माण और उद्घाटन की पुष्टि कई सरकारी और समाचार स्रोतों द्वारा की जा चुकी है। यह कोई अफवाह या फर्जी योजना नहीं है, बल्कि बिहार की जनता के लिए एक बड़ी सौगात है, जो अब हकीकत बन चुकी है।